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वो दिन दूर नहीं …

kavita
kavita
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साथियों ये रचना मेरी नहीं है .मुझे नेट पर मिली तो इसे आप तक पहुंचा
रही हूँ .
अगर मेरा दुनियां में आना भी तुमको मंज़ूर नहीं
जिस दिन तरसोगे बेटी को ,वो दिन ज्यादा दूर नही .
अपना ही था खून तुम्हारा ,जिसको कोख में मर दिया
आज की बेटी कल की मांहै ,ये भी नहीं विचार किया .
जान के भी अनजान बनो गर ,होगा माफ़ कुसूर नहीं
जिस दिन तरसोगे बेटी को वो दिन ज्यादा दूर नहीं .
बेटी हुई तो छाती पीटी,बेटा पाकर फूल गये .
वंश चले न बिन बेटी के ,शायद ये तुम भूल गये ,
बेटा लाभ है ,बेटी हानि,क्या ये बुरा फितूर नहीं ,
जिस दिन तरसोगे बेटी को ,वो दिन ज्यादा दूर नहीं .
मां होगी न बहन न बीवी ,क्या होगा फिर दुनियां में
सोचो जब नारी ही न होगी ,क्या होगा फिर दुनियां में
बिन धरती कोई बीज है पनपे ,ये कुदरत का दस्तूर नहीं .
जिस दिन तरसोगे बेटी को वो दिन ज्यादा दूर नहीं ..

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