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यही तो बसंत है ….

kavita
kavita
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कानों में रस घोले
कोयल बोले हौले -हौले
आमों पे बौर डोले
मन में हिचकोले
छा रही चार सूं मादक सुगंध है
यही तो बसंत है ,यही तो बसंत है .
ओढ़ ली धरा ने
धानी सी चुनर है
माथे पे सजाया
सोने का झूमर है
कहाँ से चुराया ,
रूप ये अनंत है
यही तो बसंत है ,यही तो बसंत है .
नयनों में आस लिए
अधरों पे प्यास लिए
कर रही प्रतीक्षा गोरी
संग मधुमास लिए
उठती ह्रदय में
उत्ताल सी उमंग है
यही तो बसंत है ,यही तो बसंत है .
बेला फुले ,टेसू फुले
फूला पलाश है ,
धरती के संग संग
नाचे आकाश है
चढ़ आया यौवन
प्रकृति पे दिग दिगंत है
यही तो बसंत है ,यही तो बसंत है .

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