kavita
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बहुत दिनों के बाद खिली है धूप
चमक उठा कोना धरती का
निखर उठा है रूप .
बहुत दिनों के बाद खिली है धूप .
सिकुड़े -सिमटे सब इन्सां थे
सहमे जीव -जंतु
मटमैली धरती की चादर
बर्फीला हर तंतु
अम्मा बैठी तापें कोइला
चुप है उनका सूप
बहुत दिनों के बाद खिली है धूप ,
कोई बैठा ऐ .सी .में
कहीं नहीं है कुटिया
कहीं चल रही चाय -काफी
कहीं पे भूखी बिटिया
पेड़ कहीं झूम रहें हैं
कहीं नहीं है दूब
बहुत दिनों के बाद खिली है धूप .
बड़ा अनोखा ये जीवन है
धूप छाव का संगम
कहीं नफरत की आग धधकती
कहीं प्रेम का उपवन
कहीं पे जगमग उजियारा
कहीं है तम का कूप
बहुत दिनों के बाद खिली है धूप
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