kavita
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जश्ने चरागाँ है ,एक दीप जलाओ यारों
आओ मिल कर इन अंधेरों को जलाओ यारों
काली-काली सी है आज अमावस की रात
इस अमावस को शबे -मेराज बनाओ यारों .
जिनके घर रौशनी को तरसे हैं ,
रौशनी थोड़ी सी उनको दे आओ यारों .
इल्म की रौशनी में हम बनेंगे कुंदन
खुद को सूरज न सही दीपक तो बनाओ यारों .
जिस इन्सां के पसीने में हो मेहनत की महक
सर उसी की परस्तिश में झुकाओ यारों .
दोस्ती ,प्यार ,वफ़ा, इबादत और खुदा
ऐसे फूलों से घर अपना सजाओ यारों
लम्बा सफर घनी छाँव ,मैं तन्हा ,
साथ साये का हो सूरज को बुलाओ यारों ..
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