Menu
blogid : 10099 postid : 93

.गज़ल……

kavita
kavita
  • 72 Posts
  • 1055 Comments

घुमती फिरती हूँ जंगल में दीवानी बन के

जिंदगी मेरी रह गयी है कहानी बन के .

आज तेरे लिए मैं हूँ कोई भूली सी सदा
कभी रहती थी तेरे दिल में मैं रानी बन के .

उसने कहा था आज से हम हो गये ग़ैर
अब जो मिलता है ,मिलती हूँअनजानी बन के .

सीता मीरा हों ज़ैनब हों या मरियम ,
रब्बा क़िस्मत लिखी कैसी ,ज्ञानी बन के

ख़ुशी में तुम मुझे बेशक भुला दोगे मगर ,
ग़म में रहूंगीतेरी आँख में पानी बन के

मैंने लिखा तो लोगों ने नकार दिया
उसका लिखा रहा अदब की निशानी बन के .

बाद मुद्दत के क्या आये हो कहने सुनने
मैं बहुत चैन से हूँ तुमसे बेगानी बन के .

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply