.गज़ल……
घुमती फिरती हूँ जंगल में दीवानी बन के
जिंदगी मेरी रह गयी है कहानी बन के .
आज तेरे लिए मैं हूँ कोई भूली सी सदा
कभी रहती थी तेरे दिल में मैं रानी बन के .
उसने कहा था आज से हम हो गये ग़ैर
अब जो मिलता है ,मिलती हूँअनजानी बन के .
सीता मीरा हों ज़ैनब हों या मरियम ,
रब्बा क़िस्मत लिखी कैसी ,ज्ञानी बन के
ख़ुशी में तुम मुझे बेशक भुला दोगे मगर ,
ग़म में रहूंगीतेरी आँख में पानी बन के
मैंने लिखा तो लोगों ने नकार दिया
उसका लिखा रहा अदब की निशानी बन के .
बाद मुद्दत के क्या आये हो कहने सुनने
मैं बहुत चैन से हूँ तुमसे बेगानी बन के .
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