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कहाँ हैं वो मुसल्लम ईमान वाले …..

kavita
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ऐ ख़ुदा हे भाग्य विधाता

मुझको ये समझ नहीं आता

हिंसा का मजहब से है ,

कैसा रिश्ता कौन सा नाता

मुसलमान का अर्थ है मुसल्लम ईमान वाला .मुसल्लम शब्द का अर्थ है पूर्ण .जिसको ख़ुदा पर पूर्ण  रूप

से विश्वास है ,वह खुदा के बनाये सारे नियमों को मानता है ,वही मुसल्लम ईमान वाला अर्थात

मुसलमान है ,जिसे अपने मुल्क से ,अपनी कौम से ,इंसानों से ,बुजुर्गों से ,यतीमों से म्स्किनो से

प्रेम हो ,गरीब ,बेसहारा अबलाओं के लिए दिल में हमदर्दी हो वही सच्चा मुसलमान है

इस्लाम धर्म के प्रमुख बुनियाद है कलमा ,रोज़ा ,नमाज़ ,ज़कात ,हज

कलमा जिसमें वो खुदा और उसके रसूल को मानतें हैं ,रमजान का पवित्र महिना जिसमें कुरआन

उतरा इसमें मुस्लिम लोग एक माह व्रत रखतें है जिसे रोज़ा कहते हैं .प्रत्येक मुस्लिम पर

दिन में 5 बार नमाज़ अदा करना जरूरी है ,जकात का अर्थ है अपनी कमाई में से गरीबों असहायों

को दान देना .हज हर मुस्लिम से यदि उसकी आर्थिक स्तिथि ठीक है तो जीवन में एक बार हज

अवश्य करना चाहिए .

रमजान के पवित्र माह के अंतिम जुमा अर्थात अलविदा का अत्यंत महत्व है ,इसे ये लोग छोटी ईद

भी कहते हैं .रमज़ान के महीने में प्रत्येक मुस्लिम रोज़ा रहते हैं ये रोज़ा केवल खाने -पीने का ही नहीं

अपितु शरीर के हर अंग का व्रत होता है ,इसमें बुरा न  सुने न बुरा देखें ,क्रोध न करें ,गाली न दें

शरीर का कोई भीं अंग अनुचित कार्य न करे .

तो फिर ये कौन मुसलमान थे जिन्होंने अलविदा के दिन नमाज़ के बाद ये अमानवीय कृत्य किये

किस धरम के हिसाब से तोड़ -फोड़ ,हिंसा ,आगजनी ,राहगीरों ,महिलाओं से दुर्व्यवहार कर के

मजहब का कौन सा रूप प्रदर्शित किया है .

देश के एक भाग में हिंसा हो रही है तो उसके जवाब में बेकुसूर लोगों पर ज़ुल्म करना कहाँ की

खुदा परस्ती है कहां खुदा ये सब करने को कहता है की ये सब करके तुम मुसलमान

कहलाओगे ऐसे लोग तो मुसलमान तो क्या इन्सान कहलाने के भी हकदार नहीं है .

इस्लाम धर्म के पैगम्बर हजरत मुहम्मद के बारे में है की वः रोज़

रास्ते से आते जाते थे एक बूढी महिला हमेशा उन पर कूड़ा फेकती थी ,एक दिन जब वो

गये तो उन पर कूड़ा नहीं पड़ा तो उन्होंने लोगों से पूछा तो पता चला की वह महिला अस्वस्थ

है तो वो तुरंत उस महिला के घर गये और उसका हाल पुछा ,इस पर वः महिला अपने व्यवहार

पर लज्जित हुई और माफ़ी मांगी और उन्हीं के मानने वाले ये अमानवीय कार्य करे ये कैसे

रसूल के मानने वालें हैं ?

कर्बला में जो युद्ध हुआ जिसकी याद में मुस्लिम लोग मुहर्रम मनातें हैं ,इसमें अगर हजरत अली

के पक्ष के लोग चाहते तो अपनी चमत्कारी शक्तियों का प्रयोग कर युद्ध जीत सकते थे परन्तु वे

नियम से लडे और अपने को बलिदान कर इस्लाम धर्म का उदाहरन प्रस्तुत किया .

फिर ये उनको मानने वाले कैसे मुसलमान हैं जो खुदा और उनके रसूल के किसी नियम को नहीं मानते

हैं इनका मजहब सिर्फ लूटपाट हिंसा है या ये मानना अधिक उचित होगा की इनका कोई मजहब नहीं है

ये इन्सान नहीं वहशी -दरिन्दे है इनका मजहब बस कत्लोगारत है .

कितने उत्साह से लोग ईद का इंतजार कर रहा थे क्या मुम्बई .कानपूर ,इलाहबाद ,लखनऊ में लोग

उत्साह से ईद मना पाएंगे .जो बच्चे सज -धज कर हंसते -गाते सडकों पर दीखते क्या अब वो

मंजर दिखेगा .

देश के पूर्वोत्तर भाग में जो घटनाएँ हो रहीं हैं क्या उन्हें कैंसर की तरह पुरे देश

में फैलाना जायज़ है और यदि ये कैंसर फैलाने पर आमादा ही हैं तो प्रशासन को चाहिए की इन

कीड़ों को पूरी तरह नष्ट कर दें ताकिये पुरे देश को अपनी लपेट  में न ले सकें .

कहाँ तो ये कहा कहा गया है की –

घर से मस्जिद है बहुत दूर ,चलो यूँ कर लें

किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाये .

और कहाँ ये पुरे देश को रुलाने की तैयारी कर रहें हैं क्या ये अपने को मुसल्लम ईमान वाला कहते है

ये मुसलमान तो दूर की बात इन्सान कहने के भी अधिकारी नहीं है .सरकार को चाहिय इनके

साथ जरा भी ढिलाई न करे ऐसे लोगों से सख्ती से निपटा जाये .और मुसल्लम ईमान वालों को

आगे आकर इनके खिलाफ़ आवाज़ उठानी चाहिए जिनके दिलों में अपने वतन से ,कौम से ,प्यार नहीं

है जो खुदा और रसूल के बनाये कानूनों पर नहीं चलते तो फिर ये कैसे मुसलमान हुए .

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