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वो सुबह कभी तो आएगी ……

kavita
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काफी दिन पहले मैंने एक समाचार पढ़ा था कि एक भारतीय व्यक्ति ने अपनी जापानी पत्नी को इसलिए तलाक़

दिया की वो उसे विदा करने एअरपोर्ट पर नहीं आई शायद उसके अहम को चोट लगी जब की उसकी पत्नी का कहना

था कि सुबह जब हम एक दुसरे को विदा क्र चुके थे आफ़िस से अवकाश ले कर एअरपोर्ट आकर विदा करने का कोई

औचित्य नहीं बनता है .

अगर ये हमारे भारतीय परिवेश की बात होती तो पति या पत्नी कोई भी बहाने से छुट्टी लेकर विदा करने पहुंच

जाता .ये हमारे देश के लोगों की विशेषता है है की चाहे निजी काम कितना भी छोटा को उसके सामने आफ़िस

का कितना भी जरूरी काम हो वरीयता निजी काम को ही दी जाती है .

लोगों ने अपने सामाजिक जीवन तथा प्रोफेशनल लाइफ़ के बीच लाइन खीँच कर बंटवारा कर दिया है ,जो बात

निजी जीवन में ग़लत है बेईमानी है झूटी है वो सारी बातें कार्यक्षेत्र में सही हैं .अगर घर में पैसा चुराया गया

तो बहुत बुरी बात है ,लेकिन अगर ऑफ़िस में आये धन से निकला गया तो ये सही है ,इसमें कुछ भी

बेईमानी नहीं है .घर में पूजा है ,कोई बीमार है ,किसी शादी में जाना है तो छुट्टी ले लिया ,बाद में आकर हस्ताक्षर

बना दिया कि उपस्थित थे ,काम भी हो गया और छुट्टी भी बच गयी .लोग इतने इन सब बातों के आदि हो

गयें हैं की उन्हें उनकी अंतरात्मा धिक्कारती भी नहीं है .इसे जीवन में सामान्य बात मान कर स्वीकार कर लिया

गया है .भ्रष्टाचार का हल्ला खूब मचाएंगे लेकिन खुद उससे कोई परहेज़ नहीं करेंगे .

समाज ने भी इस बेईमानी को सम्मान दिया है .हमारे मुहल्ले में एक ऐसे व्यक्ति हैं जो गबन के आरोप

में जेल भी जी चुके हैं परन्तु वो एक इज्ज़तदार व्यक्ति हैं क्यूंकि उनके पास कोठी कार सब कुछ है .ऐसे बहुत

उदाहरन मिल जायेंगे ,जब की ऐसे लोगों का सामाजिक बहिष्कार होना चाहिए .

छोटे चोर पकड़े जातें हैं तो वो शर्म से अपने चेहरों को छुपा लेतें हैं .लेकिन घोटालों ,गबन ,करने वाले बड़े -बड़े

लोगो के कानों पर जूं नहीं रेंगती ,वे ढिठाई से अपनी गर्दन ऊँची किये रहतें हैं .क्योंकि –

जिंदगी में उसने ,बहुत तरक्की कर ली

क्यूंकि ,बेईमानी की परिभाषा ,

अपने सुविधानुसार गढ़ ली .

अपने सामाजिक जीवन में जो नैतिकता की परिभाषा है बल्कि ये कहना उचित होगा की जो सदाचार या सही ,गलत

है उसे घर ,ऑफिस दोनों स्थान पर एक ही माना जाये तभी बात बनेगी हम ,हमारा देश उन्नति करेगा .

वैसे देश की परवाह भी किसे है केवल अपनी उन्नति वो भी धन से सम्बन्धित ,नजर आती है हांलांकि आगे

चलकर इसमें भी अपना नुकसान है ,लेकिन तुरंत लाभ के सामने दूरगामी हानि नजर नहीं आती है .

फिर इतना सोचने की फुर्सत भी कहाँ है .

काश अगर ऑफिस के कामों में भी घर के सच ,झूठ की परिभाषा लागु की जाती तो हमारा देश भी जापान

जैसा विकसित बन सकता है न जाने वो समय कब आएगा .लेकिन ये उम्मीद की जा सकती है की वो

सुबह कभी तो आएगी ,क्योकि उम्मीद पर दुनियां क़ायम है .

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