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….पिता ….प्यारा सा रिश्ता

kavita
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पिता ,प्यारा सा रिश्ता

जैसे फरिश्ता

जुगनू की चमक

फूलों की महक

कभी बैठे थककर

सहारा दिया

हमेशा दिया ,

नहीं कुछ  लिया

न माँगा सिला

किया न  गिला ,

बाँहों में उसकी झूला हमने

आँखों से उनकी देखे सपने

डगमगाए कभी तो थामी बाहें

अँधेरे में हमको दिखाई राहें ,

हम  उनकी है रचना

वे सृजन हार हैं ,

सुरक्षा कवच हैं दीवार हैं

रहें कहीं पे साथ हैं

ख़ास  होने का देते अहसास हैं .

हम हैं मिटटी वो कुम्हार हैं

सावनी झोंकों की फुहार हैं .

ऐसा है प्यारा पापा का रिश्ता

मेरे लिए हैं वो फरिश्ता ..

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