kavita
- 72 Posts
- 1055 Comments
पिता ,प्यारा सा रिश्ता
जैसे फरिश्ता
जुगनू की चमक
फूलों की महक
कभी बैठे थककर
सहारा दिया
हमेशा दिया ,
नहीं कुछ लिया
न माँगा सिला
किया न गिला ,
बाँहों में उसकी झूला हमने
आँखों से उनकी देखे सपने
डगमगाए कभी तो थामी बाहें
अँधेरे में हमको दिखाई राहें ,
हम उनकी है रचना
वे सृजन हार हैं ,
सुरक्षा कवच हैं दीवार हैं
रहें कहीं पे साथ हैं
ख़ास होने का देते अहसास हैं .
हम हैं मिटटी वो कुम्हार हैं
सावनी झोंकों की फुहार हैं .
ऐसा है प्यारा पापा का रिश्ता
मेरे लिए हैं वो फरिश्ता ..
Read Comments